टकरा ही गई मेरी नज़र उन की नज़र से।
धोना ही पडा हाथ मुझे क़ल्ब-ओ-जिगर से।
इज़हार-ए-मोहब्बत न किया बस इसी डर से,
ऐसा ना हो गिर जाऊं कहीं उन की नज़र से।
ऐ! जोक-ए-तलब, जोश-ए-जुनून ये तो बतादे,
जाना है कहाँ और हम आए हैं किधर से।
'फैयाज़' अब आया है जुनूं जोश पे अपना,
हंसता है ज़माना मैं गुज़रता हूँ जिधर से।
--- फैयाज़ हाश्मी
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