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रूदाद-ऐ-मुहब्बत क्या कहिये कुछ याद रही...


रूदाद-ऐ-मुहब्बत क्या कहिये कुछ याद रही कुछ भूल गए
दो दिन की मसर्रत क्या कहिये कुछ याद रही कुछ भूल गए

जब जाम दिया था साकी ने जब दौर चला था महफ़िल में
वो होश की सा-अत क्या कहिये कुछ याद रही कुछ भूल गए

एहसास के मैखाने में कहाँ अब फिक्र-वो-नज़र की कंडीलें
आलम की शिद्दत क्या कहिये कुछ याद रही कुछ भूल गए

अब अपनी हकीक़त भी 'सागर' बेरब्त कहानी लगती है
दुनिया की हकीक़त क्या कहिये कुछ याद रही कुछ भूल गए

--- सागर सिद्दिकी


रूदाद-ऐ-मुहब्बत=प्यार की इन्तहा/Extream of love; मसर्रत=खुशी/Happyness;
सा-अत=पल/moment; फिक्र-ओ-नज़र=सोच/समझ/understanding; कान्दिलें=ज्योति/candles;
आलम=माहौल/condition; शिद्दत=दिल से/By heart; बेरब्त=अनजान/Unknown

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