हम दोस्ती ऐहसान वफ़ा भूल गए हैं
ज़िंदा तो हैं जीने की अदा भूल गए हैं
खुशबू जो लुटाते हैं मसलते हैं उसी को
ऐहसान का बदला ये मिलता है कली को
ऐहसान तो लेते हैं सिला भूल गए हैं
करते हैं मुहब्बत का और ऐहसान का सौदा
मतलब के लिए करते हैं ईमान का सौदा
डर मौत का और खौफ-ऐ-खुदा भूल गए हैं
अब मोम में ढलकर कोई पत्थर नहीं होता
अब कोई भी कुर्बान किसी पर नहीं होता
यूँ भटके हैं मंजिल का पता भूल गए हैं
--- पयाम सईदी
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