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चांदनी छत पे चल रही होगी...


चांदनी छत पे चल रही होगी
अब अकेली टहल रही होगी

फिर मेरा ज़िक्र आ गया होगा
वो बर्फ-सी पिघल रही होगी

कल का सपना बहुत सुहाना था
ये उदासी न कल रही होगी

सोचता हूँ कि बंद कमरे में
एक शमा-सी जल रही होगी

तेरे गहनों सी खन-खनाती थी
बाजरे की फसल रही होगी

जिन हवाओं ने तुझको दुलराया
उन में मेरी ग़ज़ल रही होगी


--- दुष्यंत कुमार

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