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तू किसी और की जागीर है ऐ जान-ए-ग़ज़ल.....


तू किसी और की जागीर है ऐ जान-ए-ग़ज़ल,
लोग तूफान उठा देंगे मेरे साथ ना चल;

पहले हक़ था तेरी चाहत के चमन पर मेरा,
पहले हक़ था तेरी खुशबू-ए-बदन पर मेरा;
अब मेरा प्यार तेरे प्यार का हक़दार नहीं,
मैं तेरे गेसुओं-रुखसार का हक़दार नहीं;
किसी और के शानों पर है तेरा आंचल,
लोग तूफान उठा देंगे मेरे साथ ना चल;

तेरे प्यार से घर अपना बसाऊंगा कैसे,
मैं तेरी माँग सितारों से सजाऊंगा कैसे;
मेरी क़िस्मत में नहीं प्यार की खुशबू शायद,
मेरे हाथों की लकीरों में नहीं तू शायद;
अपनी तक़दीर बना मेरा मुक़द्दर ना बदल,
लोग तूफान उठा देंगे मेरे साथ ना चल;

मुझसे कहती हैं ये खामोश निगाहें तेरी,
मेरी परवाज़ से उँची हैं पनाहेन तेरी;
और इस गैरत-ए-एहसास पे शर्मिंदा हूँ,
अब किसी और की बाहों में हैं बाहें तेरी;
अब कहाँ मेरा ठिकाना है कहाँ तेरा महल,
लोग तूफान उठा देंगे मेरे साथ ना चल;

--- ज़फर कलीम

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