कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,
कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता;
जिसे भी देखिए वो अपने आप मैं गुम है,
जुबां मिली है मग़र हम जुबां नहीं मिलता;
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले,
ये ऐसी आग है जिसमे धुआँ नहीं मिलता;
तेरे जहाँ मैं ऐसा नहीं के प्यार ना हो,
जहाँ उम्मीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता;
--- शहरयार
Is this Ghazal by Shaeharyaar or Nida Fazli OR both are the same
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