मेरी अज़ब है जिंदगी किसी से क्या गिला करूँ,
तकदीर रूठ जाए तो मेरे खुदा मैं क्या करूँ;
हालात ने नसीब में ग़म भर दिए हैं इस कदर,
ना मंज़िलों की कुछ खबर मैं कारवाँ को क्या करूँ;
मिल जाए डूबने पे भी आखिर तो इक साहिल कहीं,
तुफान की है आरजू, तूफान की दुआ करूँ;
मंज़िल की थी तलाश तो गार्द-ए-सफर मिली मुझे,
आँखें बरस पड़ी मेरी काली घटा को क्या करूँ;
--- अनजान शायर
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