क्या बात है उस की आँखों में अब पहली सी सौगात नहीं
गुलशन है मगर गुलरंग नहीं, बादल है मगर बरसात नहीं
एहसास-ऐ-मुरव्वत ग़ायब है, नापैद हैं अब इखलास-ओ-वफ़ा
दुनियां में मशीनी दौर आया, अब पहले से हालात नहीं
मस्जूद-ऐ-मलाइक जो था बना, उस इंसान का अब काल पड़ा
आदम की तो हैं औलाद बहुत, इंसान की मगर बुह्तात नहीं
अब कोई रसूल न आएगा, बन्दों पे मगर है उस की नज़र
जब जुर्म-ओ-खता की कसरत हो, क्या आती हैं आफ़ात नहीं?
हर बात नहीं कहती है ज़बान, आंखें भी बहुत कुछ कहती हैं
हम उन की बात समझते हैं, इनकार में क्या इसबात नहीं!
लैला-ऐ-सुखन के गेसू का ख़म हम ने संवारा है कब से?
"यह निष्फ सदी का किस्सा है, दो चार बरस की बात नहीं"
ऐ फूल! हमें फिर आयी नज़र, गुलशन में वो ही नौखैज़ कली
बचपन का ज़माना बीत गया, बदली हैं मगर आदत नहीं
गुलशन है मगर गुलरंग नहीं, बादल है मगर बरसात नहीं
एहसास-ऐ-मुरव्वत ग़ायब है, नापैद हैं अब इखलास-ओ-वफ़ा
दुनियां में मशीनी दौर आया, अब पहले से हालात नहीं
मस्जूद-ऐ-मलाइक जो था बना, उस इंसान का अब काल पड़ा
आदम की तो हैं औलाद बहुत, इंसान की मगर बुह्तात नहीं
अब कोई रसूल न आएगा, बन्दों पे मगर है उस की नज़र
जब जुर्म-ओ-खता की कसरत हो, क्या आती हैं आफ़ात नहीं?
हर बात नहीं कहती है ज़बान, आंखें भी बहुत कुछ कहती हैं
हम उन की बात समझते हैं, इनकार में क्या इसबात नहीं!
लैला-ऐ-सुखन के गेसू का ख़म हम ने संवारा है कब से?
"यह निष्फ सदी का किस्सा है, दो चार बरस की बात नहीं"
ऐ फूल! हमें फिर आयी नज़र, गुलशन में वो ही नौखैज़ कली
बचपन का ज़माना बीत गया, बदली हैं मगर आदत नहीं
--- तन्विरुद्दीन अहमद 'फूल'
Bahut Khub likha hai janaab. Lovely.
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