एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी
ऐसा तो कम ही होता है वो भी हों तनहाई भी
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
कितनी सौंधी लगती है तब मांझी की रुसवाई भी
दो-दो शक्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में
मेरे साथ चला आया है आप का इक सौदाई भी
खामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी खामोशी है
उन की बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी
--- गुलज़ार
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