Pages

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऎसी तो न थी...


बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऎसी तो न थी
जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऎसी तो न थी

ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-करार
बेक़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऎसी तो न थी

चश्म-ऐ-कातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसे अब हो गयी कातिल कभी ऎसी तो न थी

उन की आंखों ने खुदा जाने किया क्या जादू
के तबीयत मेरी माँइल कभी ऎसी तो न थी

अक्स-ऐ-रुख-ऐ-यार ने किस से है तुझे चमकाया
ताब तुझ में माह-ऐ-कामिल कभी ऎसी तो न थी

क्या सबब तू जो बिगाड़ता है 'ज़फर' से हर बार
खू तेरी हूर-ऐ-शमाइल कभी ऎसी तो न थी

--- बहादुर शाह 'ज़फर'


No comments:

Post a Comment

You can also send your creations to post here....
viksinsa@gmail.com

with the subject line Ghazals

Latest Ghazals

Ghazlen