शायद आ जायेगा साकी को तरस अब के बरस
मिल न पाया है उन आंखों का भी रस अब के बरस
ऐसी छाईं थी कहाँ ग़म की घटायें पहले
हाँ मेरे दीदा-ए-तर खूब बरस अब के बरस
उफ़ वो उन मद-भरी आंखों के छलकते हुए जाम
बढ़ गई और भी पीने की हवस अब के बरस
पहले ये कब था की वो मेरे हैं मैं उन का हूँ
उन की यादों ने सताया है तो बस अब के बरस
--- राय रामपुरी