कभी खामोश बैठोगे कभी कुछ गुनगुनाओगे,
में उतना याद आऊंगा मुझे जितना भुलाओगे।
कोई जब पूछ बैठेगा खामोशी का सबब तुमसे,
बहुत समझाना चाहोगे मगर समझा न पाओगे।
कभी दुनिया मुक्कमल बन के आएगी निगाहों में,
कभी मेरे कभी दुनिया की हर एक शेह में पाओगे।
कहीं पर भी रहें हम तुम मुहोब्बत फिर मोहब्बत है,
तुम्हें हम याद आयेंगे हमें तुम याद आओगे।
में उतना याद आऊंगा मुझे जितना भुलाओगे।
कोई जब पूछ बैठेगा खामोशी का सबब तुमसे,
बहुत समझाना चाहोगे मगर समझा न पाओगे।
कभी दुनिया मुक्कमल बन के आएगी निगाहों में,
कभी मेरे कभी दुनिया की हर एक शेह में पाओगे।
कहीं पर भी रहें हम तुम मुहोब्बत फिर मोहब्बत है,
तुम्हें हम याद आयेंगे हमें तुम याद आओगे।
--- नज़ीर बनारसी
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